कामकुंठित लीला भंसाली

कामकुंठित लीला   फँसाली 

इन दिनों चैनलों पर कुछ ऐसे लोग गुटरगूँ में मुब्तिला हैं जिनमें से कइयों को इतिहास और काव्य (पद्मावत )का फर्क नहीं मालूम। पद्मावत सूफी दर्शन से प्रेरित एक महाकाव्य  है इतिहास नहीं है। इतिहास का उल्लेख मोरक्को के आलमी घुमक्कड़ इब्नबतूता करते  हैं   जिन्होनें  सोलह हज़ार वीरांगनाओं समेत महारानी पद्मनी के जौहर का ज़िक्र किया है।  

इस दौर में काम कुंठित रक्तरंगी (लेफ्टिए ),जेहादी तत्व और तमाम कांग्रेस द्वारा पोषित  देशविरोधी ताकतें एक हो गए हैं.पहले ये मार्क्सवाद के बौद्धिक गुलाम भकुए म -कबूल फ़िदा हुसैन को पकड़के लाये थे बहुत अच्छे चित्रकार थे वह  उनसे इन्होनें थ्री  हंड्रेड रामायण की आड़ में अभद्र अशोभन चित्र बनवाये सनातन प्रतीकों के ,एक  चित्र मरियम का  भी बनवाते ये वर्णसंकर जो अपनी पांच पीढ़ियों के बारे में नहीं बतला सकते वे इतिहास के गौरवपूर्ण पृष्ठों कोआज  तोड़ - मरोड़के के प्रस्तुत कर रहें हैं। 

प्रेम काव्य लिखना है शौक से लिखो और जाकर वाघा बॉर्डर पर फिल्माओ कौन रोकता है आप भी मोमबत्ती जलाओ वाघा बॉर्डर पर जाकर नामचीन लेफ्टिए कुलदीप नैय्यर की तरह।  अपनी नायिकाओं से  मोमबत्ती नृत्य कराओ बीसहज़ार मोमबत्तियां लेकर। 

ये वही लोग है जिन्होनें महात्मा गांधी को  साम्राज्यवादियों  का एजेंट नेता सुभाष को टोबो का स्वान (कुत्ता )बतलाया था। वही पीढ़ी है ये कन्हैया और कन्हैया तत्व उसी जेनयू में पल्लवित हुए हैं जहां कट्टरपंथियों ने पैसा झौंका हुआ है। 

लीला फंसाली उसी सोच के व्यक्ति हैं।पदमावती का विरोध करने वालों को कुछ चैनल और इनके द्वारा पोषित बौद्धिक भकुए गुंडा बतला रहे हैं। पूछा जा सकता  इनसे ये क्या कर रहें हैं कामकुंठित लोगों के समर्थन में खड़े होकर। 

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