(1 )D2 -इसका चिकित्सा जगत में रासायनिक नाम है एरगोकाल्सीफेरोल। पुष्टिकृत खाद्यों (फोर्टीफ़िएड फूड्स )से यह उपलब्ध हो जाता है। पादप उत्पाद और सम्पूरण भी इसकी आपूर्ति करते हैं।
(2)D3 -इसे कहते हैं चोलेकाल्सीफेरोल (Cholecalciferol )पुष्टिकृत खाद्यों एवं वसीय -मच्छी ,फैटी फिश -वसा बहुल मच्छी ,मच्छी का तेल ,कॉड लिवर आयल ,अंडे तथा लिवर(यकृत )आदि इफरात से मुहैया करवा देते हैं।इसकी आपूर्ति सम्पूरण (supplements )भी करते हैं। आपकी चमड़ी पर सौर विकिरण (धूप का पराबैंगनी अंश ) पड़ने पर त्वचा के नीचे भी यह बन सकता है। लेकिन संरचना की दृष्टि से इसके रासायनिक घटक अलग किस्म के होंगे।
क्या है विटामिन -D की कमी के लक्षण ?
(१)अस्थि - पीड़ा बोन पैन ,पेशीय कमज़ोरी मसल वीकनेस
इसकी कमी के ही स्पष्ट प्रभाव हैं सबब हैं। थोड़ी बहुत
कमीबेशी लक्षणों के रूप में प्रकट नहीं भी होती है.
इसकी आवश्यक या वांच्छित डोज़ को लेकर माहिरों की
सिफारिशें उम्र के अनुरूप इस प्रकार हैं :
चिकित्सा संस्थान (Institute of Medicine,IOM )के अनुसार :एक से अठारह बरस उम्र के लिए प्रतिदिन की खुराक में ६०० अंतर्राष्ट्रीय यूनिट (आई यू ),१९ -७० साल के लिए ६०० आई यू ,७१ साला और उससे ऊपर उम्र के लिए ८०० आई यू की सिफारिश करता है।
कमी बेशी से पैदा जोखिम वालों के लिए स्रावी संघ की
सिफारिशें दी जा रही हैं :
कमी -बेशी के जोखिम वालों के लिए स्रावितंत्र संघ (endocrine Society)की सिफारिशें इस प्रकार है :एक से अठारह साला लोगों के लिए प्रतिदिन ६०० -१००० आई यू ,१९ -७० साला के लिए १५०० -२००० आई यू ,सत्तर से ऊपर आयुवर्ग के लिए १५०० -२००० आई यू।
विटामिन -D से जुड़ी है कई मामलों में हमारी सेहत की नव्ज़
जिसकी कमीबेशी अतीत में कई रूपों में दर्ज़ की गई है :
बीसवीं शती के आरम्भ में न्यूयोर्क ,बोस्टन ,नेदरलॅंड्स के लीडेन में कोई ९० फीसद बच्चे सूखा रोग (rickets )से ग्रस्त थे। १८८९ में इससे बचाव के लिए सौर स्नान (सूर्य स्नान ,सन बाथ )लाभदायक समझा गया।
कैल्शियम के साथ इसका मणिकांचन का साथ है :कैल्शियम को विटामिन D के साथ लेने से ही दोनों का पूरा लाभ मिल पाता है। विटामिन D की मौजूदगी में अंतड़ियाँ कैल्शियम जज़्बी बेहतर तरीके से करतीं हैं। खून में कैल्शियम का स्तर समुचित बना रहता है। अस्थियों के खनिजीकरण के लिए यह एक ज़रूरी बात भी रहती है। ऐसे में सहज ही tetany से बचाव हो जाता है खून में कैल्शियम की असाधारण कमी ही इस असुविधाजनक परिस्थिति की वजह बनते देखी गई है।
Tetany is repeated prolonged contraction of muscles ,especially of the face and limbs ,caused by low blood calcium arising from ,e.g .an underactive parathyroid gland or vitamin D deficiency .
दूसरी ओर विटामिन D की कमीबेशी ह्यपरपैराथीरोइडिस्म (पैराथाइरॉइड ग्रंथि की अतिरिक्त सक्रियता ,ओवेरली एक्टिव होना ) की ओर ले जाती है। इस स्थिति में अतिरिक्त क्षय होने लगता है अस्थि द्रव्यराशि का बॉन मॉस का। नतीजा होता है जिन्न का बोतल से बाहर आकर ओस्टेओपेनिअ ,ओस्टोमलाकिआ /ओस्टोमलासा ,ऑस्टियोपोरोसिस रोग की वजह बनना (इस आलेख की पहली क़िस्त में हम इन तीनों के बारे में प्रारम्भिक जानकारी दे चुके हैं ). इसी के साथ अस्थि भंग के खतरे का वजन भी बढ़ जाता है। बात बे बात ,उठते बैठते अस्थि भंग का ख़तरा पैदा हो जाता है।
एक अनुमान के अनुसार हरेक साल ६५ साल और इससे ऊपर की उम्र के प्रत्येक तीन में से एक बुजुर्गभाई /बहन गिरते हैं गिर पड़ते हैं घर बाहर में और इनमें से ५. ६ की अस्थि भंग हो जाती है।विटामिन D इस स्थिति से बचाये रह सकता है इसकी कमी न होने पाए।
मानवीय पेशी में विटामिन D रिसेप्टर्स (अभिग्राही )मौजूद रहते हैं पेशीय ताकत क्षमता पर इनका सीधा प्रभाव पड़ता है।
विटामिन D की गंभीर कमी ,बेहद की कमी मायोपथी (पेशी रोग )-पेशी कमज़ोरी और पेशीय दर्द की वजह बन जाती है।
विटामिन -D आभरण पुन : विटामिन D की ज़रूरी आपूर्ति इस स्थिति को दुरुस्त कर सकती है। ७०० -१००० आई यू D3 के ऐसे में प्रतिदिन सेवन से चलते फिरते उठते हुए में ही -गिरने की दर में १९-२६ फीसद तक कमी लाइ जा सकती है।
कैल्शियम के संग साथ D3 रोज़ाना ८०० आई यू लेते रहने पर इस स्थिति में अस्थि भंग हड्डी टूटने के खतरे का वजन १०-१५ फीसद कम हो जाता है।
इसका एक लाभ और भी मिलता है विटामिन D की कमी न रहने पर घुटने और नितम्ब (हिप पैन )के दर्द में भी थोड़ी राहत मिलती है।
कमी बनी रहने पर यह पीड़ा दो से चार बरसों में ही बद से बदतर हो जाती है बढ़ जाती है ऐसा आज़माइशों से पुष्ट हुआ है जो ५० -८० साला लोगों पर की गईं हैं।
हृदय एवं हृदय तथा रक्तसंचरण संबंधी रोगों में
विटामिन D की कमी उच्चरक्तचाप (hypertension ) ,खून में ज्यादा चर्बी
(hyperlipidemia)
की दर में बढ़ोतरी की वजह बनती है।
अलावा इसके परिहृद्य धमनी रोग (Coronary artery disease ,CAD),दिल के बड़े दौरे (myo-cardial infarction ),हार्ट फेलियर और दिमाग के दौरों (brain attacks )में इज़ाफ़ा हो सकता है पेरीफेरल वैस्कुलर डिजीज में भी बढ़ोतरी हो सकती है विटामिन D की कमी बनी रहने से।
The term peripheral vascular disease is commonly used to refer to peripheral artery disease (PAD ),meaning narrowing or occulusion by atherosclerotic plaques of arteries outside of the heart and brain .
सर्दियों में अधिक श्वसन सम्बन्धी संक्रमणों से घिरे रहना भी विटामिन D की कमी का परिणाम हो सकता है। ऊपरी तथा निचले श्वसन मार्ग के संक्रमणों में बढ़ोतरी के संकेत इस विटामिन की कमी से प्रेक्षण में आते देखे गए हैं। अस्पताल में भर्ती होने के दौरान होने वाला नमूनिया मूत्रमार्ग के संक्रमण ,बक्टेरेमिअस आदि इन्फेक्शन्स भी इसकी कमी से जोड़े गए हैं।
मूल प्रारूप इस आलेख का अंग्रेजी में भी पढ़ सकते हैं आप :
There are two forms of vitamin D, D2 and D3. Vitamin D2, also known as ergocalciferol, comes from fortified foods, plant foods, and supplements. Vitamin D3, also known as cholecalciferol, comes from fortified foods, animal foods (fatty fish, cod liver oil, eggs, and liver), supplements, and can be made internally when your skin is exposed to ultraviolet (UV) radiation from the sun. Structurally, these two are not the same.
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