Posts

Showing posts from August, 2018

भारत के इस हीरे को विजय घाट पर स्थान मिलना उनकी कद काठी के ही अनुरूप है। यदि इस वक्त भारत में कांग्रेस की सरकार होती तो नरसिम्हा राव की तरह उन्हें दिल्ली से बाहर कहीं ग्वालियर में ही स्थान मिलता। कांग्रेस राज में पूरे राजघाट पर नेहरुवंशियों का कब्ज़ा रहा

Image
दिल और वाणी दोनों थे बाजपेयी जी के पास। जब बोलते थे दोनों का लय (विलय )हो जाता था।गद्य को पद्य में कहना यथार्थ को कविता में कहना और भाव और लय को बनाये रखना अतिरिक्त कौशल की मांग  करता है। वाजपेयीजी के पास दोनों थे दिल और वाणी दोनों ही  निष्पाप थे।  भारत के इस हीरे को विजय घाट पर स्थान मिलना उनकी कद काठी के ही अनुरूप है। यदि इस वक्त भारत में कांग्रेस की सरकार होती तो नरसिम्हा राव की तरह उन्हें दिल्ली से बाहर कहीं ग्वालियर में ही स्थान मिलता। कांग्रेस राज में पूरे राजघाट पर नेहरुवंशियों का कब्ज़ा रहा।  इस पावन भूमि से माननीय चन्द्रशेखरजी ,गुलज़ारीलाल नंदा ,लालबहादुर शास्त्री जी ,इंद्रकुमार गुजराल ,मुरारजी भाई देसाई , चरण सिंह जी ,विश्वनाथ प्रताप सिंह आदि को दूर ही रखा गया।  हीरे की क़द्र कोई जोहरी ही जानता है। उनके आवास पर   जाकर उन्हें भारतरत्न का सम्मान दिया  वर्तमान राजनीतिक प्रबंध ने। भारत धर्मी समाज उनका आभारी है।  वाजपेयी जी वह सख्शियत थे जो सबको प्यारे थे। सबका सम्मान करते थे। सबको साथ लेकर चलते थे। वह भारत को मूलतया : एक...

जीवन का विज्ञान 'आयुर्विज्ञान 'एक विहंगम दृष्टि' (विहंगावलोकन ,सरसरी नज़र )Ayurveda a Birds Eye View

जीवन का विज्ञान 'आयुर्विज्ञान 'एक विहंगम दृष्टि' (विहंगावलोकन ,सरसरी नज़र   )Ayurveda a Birds Eye View आयुर्वेद का उल्लेख वैदिक ग्रंथों (वेदों )में भी मिलता है। यह चिकित्सा की सबसे प्राचीन पद्धति समझी गई है जो लगातार प्रचलन में रही है। पूरे  व्यक्ति की काया और उसके चित का समाधान प्रस्तुत करती है यह चिकित्सा प्रणाली । हमारी काया और हमारे मन को आरोग्य प्रदान करने वाली समेकित चिकित्सा प्रणाली (holistic health care system )है आयुर्वेद जो महज लक्षणों का इलाज़ नहीं करती पूरे प्रतिरक्षा  तंत्र को चुस्तदुरुस्त रखने का प्रयास करती है।  यहां रोग की तह तक पहुंचकर उसके बुनियाद कारणों की पड़ताल की जाती है।  आचार्य चरक यहां औषध शास्त्र (भेषज चिकित्सा )के पितामह कहलाते हैं। इनका कार्यकाल (600 before common era ,BCE)ठहरता है। 'चरक संहिता 'भेषज शास्त्र पर लिखा इनका प्रामाणिक ग्रंथ समझा गया है।  यहां तकरीबन एक लाख औषधीय पादपों ,जड़ी बूंटियों से तैयार होने वाली दवाओं की विस्तार से चर्चा आपको मिलेगी। इन दवाओं के गुणदोषों पर व...

हिंदुत्व में ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा :एकं सत् विप्रा : बहुधा वदन्ति(There is one ultimate reality (God ),known by many names -Rig Veda

Image
हिंदुत्व में ईश्वर सम्बन्धी अवधारणा :एकं सत् विप्रा : बहुधा वदन्ति (There is one ultimate reality (God ),known by many names -Rig Veda  बतलाते हुए आगे बढ़ें -हिंदुत्व एक जीवन शैली का नाम है। सनातन धर्मी भारत धर्मी समाज के तमाम लोग हिन्दू कहाते हैं।  ईश्वर की अवधारणा में यहां पूर्ण प्रजातंत्र है। त्रिदेव की अवधारणा के तहत एक ही परमात्मा तीन रूपों में अलग अलग कर्मों का नैमित्तिक कारण माना गया है यही है त्रिदेव ब्रह्मा विष्णु महेश की अवधारणा।   तैतीस कोटि (कोटि यानी प्रकार )देव हैं यहां। कुलजमा जोड़ ३३। देव का अर्थ गॉड नहीं है। यह अनुवाद की सीमा है। देव का पर्याय परमात्मा नहीं है देव ही है। जैसे  रिलिजन का रिलिजन ,धर्म का धर्म ही  पर्याय है। कोटि का गलत अर्थ करोड़ कर दिया गया है। संस्कृत भाषा का मूल शब्द है कोटि जिसके एकाधिक अर्थ हैं। तैतीस कोटि देवता यहीं से चलन में आया है तैतीस तरह को तैतीस करोड़ कर दिया गया एक अनुवाद के तहत।   One God fulfilling three different roles is often depicted as three in one . One Supreme Reality :Ishwara ,Bh...

कर्म किसी भाग्य या हाथ की लकीरों का नाम नहीं है हमारे ही पूर्व जन्मों का सहज परिणाम है जो हमें आगे पीछे मिलता रहता है.इसीलिए कहा गया है : कर्म गति टारै नाहिं टरै ,

कर्म प्रधान विश्व करि राखा ,जो जस करहि सो तस ही  फल चाखा  कर्म का संस्कृत में शाब्दिक अर्थ है हमारे द्वारा किये गए काम।  The Sanskrit word Karma means "actions" and refers to fundamental eternal( Hindu) principle that one's moral actions have unavoidable and automatic effects on one's fortunes in this life and here after i.e conditions of re -birth in the next . कार्मिक सिद्धांत मूल सनातन सिद्धांत रहा है भारत धर्मी समाज का  जिसके अनुसार हमारे द्वारा  किये अच्छे बुरे कर्म अपना अच्छा या बुरा प्रभाव ज़रूर छोड़ते हैं। ये कर्म हमारे भाग्य का निर्धारण न सिर्फ इस जन्म में बल्कि हमारे शरीर छोड़ने के बाद आगे मिलने वाले जन्मों में भी करते हैं। इनके असर से बचा नहीं जा सकता।  कर्म किसी भाग्य या हाथ की लकीरों का नाम नहीं है हमारे ही पूर्व जन्मों का सहज परिणाम है जो हमें आगे पीछे मिलता रहता है.इसीलिए कहा गया है : कर्म गति टारै  नाहिं  टरै , मुनि वशिष्ठ से पंडित ग्यानी ,   सिधि(सोच ) के लगन धरी । ...